कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस तिथि को देवउठनी एकादशी और देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है

बर्बरीक, जिनको खाटू श्याम के नाम से भी जाना जाता है, वे देवी माता के बहुत बड़े उपासक हैं।

देवी मां के वरदान से उनको तीन दिव्य बाण की प्राप्ति हुई थी, जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस आ जाते हैं। इसलिए बर्बरीक अजेय थे।

खाटू श्याम का मंदिर बहुत प्राचीन है लेकिन वर्तमान मंदिर की आधारशिला साल 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार बताते हैं

औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। उस समय मंदिर की रक्षा के लिए कई राजपूतों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया।

महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को आशीर्वाद देकर रूपावती नदी में बहा दिया।

मेरे नाम श्याम से की जाएगी और तुम्हारा नाम लेने से मात्र से कलयुग भक्तों का कल्याण होगा और सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।